data storage and retrieval method, information storage and retrieval, the systematic process of collecting and cataloging data so that they can be located and displayed on request.


 information storage and retrieval, the systematic process of collecting and cataloging data so that they can be located and displayed on request.


Basic computer,fundamental computer

Data Storage and Retrieval Method:

1. Sequential Method.

2. Direct Method

3. Index Sequential Method.

3.1.1 Sequential Method :

इस method में information को एक क्रम में स्टोर कर सकते हैं और एक क्रम में उसे निकाल सकते हैं। इस मैथेड का उपयोग सिर्फ सिक्वेंशियल मैथेड डिवाईस के ऊपर कर सकते हैं जैसे मैगनेटिक टेप एक सिक्वेंशियल स्टोरेज डिवाईस है। इस मैथेड में बहुत अधिक समय लगता है इसलिये अब इस मैथेड का उपयोग नहीं करते हैं। 3.1.2 Direct Method :

इस मैथेड को रेंडम मैथेड भी कहा जाता है क्योंकि इसमें किसी भी इनफार्मेशन को सीधे स्टोर कर सकते हैं और निकाल सकते हैं। इस मैथेड का उपयोग सिर्फ आप्टिकल डिस्क के साथ कर सकते हैं। जैसे - फ्लापी, हार्ड डिस्क इत्यादि । यह सबसे ज्यादा उपयोग में लायी जाने वाली मैथेड है क्योंकि इसके उपयोग करने से समय बचता है।




3.1.3 Index Sequential Method :

यह मैथेड भी डायरेक्ट मैथेड की तरह है। इसका उपयोग भी डायरेक्ट स्टोरेज डिवाईस के उपर करते हैं जैसे हार्ड डिस्क, सीडी, फ्लापी इत्यादि । मगर इसमें इंडेक्सिंग के द्वारा इनफार्मेशन को रिट्रीव करते हैं क्योंकि इंडेक्सिंग ज्यादा फास्ट कार्य करती है।

3.2 Secondary Memory :

स्टोरेज डिवाईस पर्सनल स्टोरेज डिवाईस कहलाती है। सेकंडरी स्टोरेज डिवाईस पर कम्प्यूटर के सभी प्रोग्राम स्टोर रहते हैं जैसे :- डॉस, विंडोस, एम.एस. ऑफिस इत्यादि इसके द्वारा बनाई गई फाईल भी सेकंड्री डिवाईस के अंदर स्टोर रहती है। सेकंडरी स्टोरेज डिवाईस दो भागों में विभाजित है।

(a) Serial Storage Device (b) Random Storage Devices/ Direct Storage Devices

Types of Secondary Storage:

1) Magnetic Tape. ii) Floppy Disk

v) Winchester Disk

1) Magnetic Tape :

ii) Hard Disk iv) Compact Disk (CD)

Magnetic Tape एक सेकंडरी स्टोरेज डिवाइस भी कहलाती है। इस डिवाइस के अंदर डाटा को स्टोर करना और डाटा को रीड करने में बहुत अधिक समय लगता है। यह सबसे पुरानी स्टोरेज डिवाईस है। मगर आज इस डिवाइस का उपयोग बहुत कम होता है । यह दिवास आडियो कैसेट की तरह कार्य करती है। इसमें दो व्हील होती है। एक व्हील में रील लिपटी रहती है और दूसरी व्हील खाली रहती है। मैगनेटिक टेप की स्टोरेज क्षमता तकरीबन मेगाबाइट होती है। यह डिवाइस बहुत ज्यादा भरोसेमंद है। क्योंकि इसके खराब होने के चान्स बहुत कम होते हैं।

ii) Hard Disk : Hard Disk सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली स्टोरेज डिवाईस है। यह डिवाईस रेडम एक्सेस डिवाईस भी कहलाती है। इसमें कहीं से भी इनफार्मेशन को पढ़ा जा सकता है और कहीं

पर भी लिखा जा सकता है। यह डिवाईस एल्युमिनियम की बॉडी से पैक रहती है। इसके अंदर

डिस्क और हेड दोनों लगे रहते हैं। यह बहुत महंगी है और इसकी स्टोरेज क्षमता लगभग 80 जी.

बी. की होती है।

हार्ड डिस्क के अंदर दो प्रकार के हेड्स का उपयोग किया जाता है (b) Non-movable Head

(a) Movable Head

(a) Movable Head : Movable Head में सिर्फ एक हेड होता है जो डिस्क की सरफेस के ऊपर मूव होता है।

(b) Nonmovable Head : Nonmovable head में एक से अधिक हेड होते हैं और हेड की संख्या डिस्क के ट्रैक पर

निर्भर करती है ।

(iii) Floppy Disk : Floppy Disk ही डायरेक्ट स्टोरेज डिवाईस है। इसमें भी इनफार्मेशन को डायरेक्ट पढ़ा जा सकता है। यह काफी सस्ती मिलती है। इसका उपयोग डाटा को एक जगह से दूसरी जगह लें जाने के लिये किया जाता है। इसकी स्टोरेज क्षमता 1.44 एम. बी. (मेगा बाईट) होती है। मगर यह स्टोरेज डिवाईस ज्यादा भरोसेमंद नहीं हैं। फ्लापी डिस्क दो प्रकार की होती हैं। a) 3.5 Inches Floppy

b) 5.25 Inches Floppy

Write Protected Notch:

इसके द्वारा फ्लापी डिस्क को प्रोटेक्ट किया जा सकता है ताकि फ्लापी के अंदर वायरस न पहुंचे। प्रोटेक्शन देने से फ्लापी की इनफार्मेशन को केवल पढ़ा जा सकता है । Index Hole:

इसके द्वारा फ्लापी डिस्क की स्टार्टिंग को सेट किया जाता है। ताकि प्रथम सेक्टर में स्टोर फैट को पढ़ा जा सके । Hub : इसके द्वारा डिस्क को गोल घुमाया जाता है और डिस्क को अंदर हिलने से भी कंट्रोल किया

जाता है ।

Read & Writable Head Move :

Disk की सतह पर रीड व राईटेबल हेड मूव करता है ताकि वह इनफार्मेशन पढ़ सके व

लिख सके ।

iv) CD, Compact Disk :

आज इस स्टोरेज डिवाईस का सबसे ज्यादा उपयोग होता है। फ्लापी डिस्क की तुलना में इसके अंदर बहुत अधिक मात्रा में डाटा स्टोर कर सकते हैं। यह स्टोरेज डिवाईस पा

ज्यादा भरोसेमंद है। सीडी की स्टोरेज कैपेसिटी तकरीबन 740 एमबी की होती है।

Types of CD i) CDR

ii) CDRW i) CDR (Compact Disk Readable): इस सीडी के अंदर सिर्फ एक बार ही इनफॉर्मेशन लिखी जा सकती है। दोबारा इसमें नहीं लिखा जा सकता है। मगर इनफोर्मेशन कई बार पढ़ी जा सकती है। यह सीडी काफी सस्ती आती है जिसकी कीमत 10 रूपये से 50 रूपये तक है।

ii) CDRW | Compact Disk Readable Writable]:

इस सीडी के अंदर कई बार इनफोर्मेशन लिखी जा सकती है। यह सीडी काफी महंगी आती

है। इसकी कीमत 250 से 300 तक है।

Winchester Disk :

यह डिवाईस भी हार्ड डिस्क की तरह एक स्टोरेज डिवाईस है, मगर इस डिवाईस की स्पीड हार्ड डिस्क से ज्यादा फास्ट है लेकिन इसकी स्टोरेज क्षमता हार्ड डिस्क से कम रहती है। विनचेस्टर डिस्क को एल्युमिनियम बाक्स के द्वारा पैक किया जाता है और इसके अंदर बिल्कुल भी हवा नहीं रहती है। अगर इसके अंदर हवा पहुँच जायेगी तो यह खराब हो जायेगी। 3.3 कम्प्यूटर वायरस क्या है।

कम्प्यूटर वायरस वह होता है जो कि कम्प्यूटर की मेमोरी में स्थित सभी प्रोग्रामों अथवा डाटा या इनफार्मेशन को अपने संक्रमण से प्रभावित करता है। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में वायरस इनफेक्शन या वायरल फिवर होने पर हमारे शरीर में वायरस पूरे शरीर के अंदर फैल जाते हैं और हमारे शरीर को अनेकों तरीकों से नुकसान पहुंचाते हैं वैसे ही कम्प्यूटर वायरस कम्प्यूटर की आंतरिक कार्य प्रणाली को प्रभावित करते हैं। जैसे वायरस हमारे शरीर में बहुत तेज गति से बढ़ते हैं वैसे ही कम्प्यूटर में इनके बढ़ने की गति काफी तेज होती है और पूरे कम्प्यूटर में आसानी से फैल

जाते है।

इसका पूरा नाम Vital Information Resources Under Size " होता है। वायरस होने पर कम्प्यूटर में निम्न प्रॉबलम आती हैं :

1. 2. प्रोग्राम को मेमोरी में लोड किये बगैर ही उपलब्ध मेमोरी रैम का घट जाना बिना किसी कारण के फाईल का आकार परिवर्तित होना ।

3. फाईलों की संख्या में अपने आप परिवर्तन होना । की-बोर्ड का अचानक अवांछित रूप से कार्य न करना । कम्प्यूटर सिस्टम का हैंग हो जाना ।

4.

5.

6.

कम्प्यूटर का अपने आप धीमी गति से कार्य करना ।

7. कम्प्यूटर प्रोग्राम अथवा डाटा का परिवर्तन अथवा नष्ट होना ।

वायरस का इतिहास :

वायरस शब्द का कम्प्यूटर में उपयोग सबसे पहले एक इंगलिस राईटर केविक गेरोल्ड ने अपनी पुस्तक "when Harlie Wasare" में सन् 1972 में किया। उन्होंने परिकल्पनाओं के तौर पर इस पुस्तक में एक कम्प्यूटर प्रोग्राम का नाम वायरस रखा था। जब टेलीफोन की घंटी मनमाने ढंग से तब तक बजता था जब तक कि टेलीफोन के तारों से जुड़ा कोई कम्प्यूटर नेटवर्क उसे नहीं मिल जाता था, इसके बाद सन् 1988 में कम्प्यूटर जगत के लिये एक विशेष ऐतिहासिक महत्व का समय रहा। इस वर्ष में कुछ अनजाने साफ्टवेयर प्रोग्राम बिना किसी पूर्व सूचना के कम्प्यूटर के क्षेत्र में आए. ऐसे साफ्टवेयर प्रोग्राम को न पहले कभी देखा था और न ही इनके बारे में कोई जानकारी थी। इस प्रकार के अति सूक्ष्म प्रोग्राम विश्व की इनफार्मेशन टेक्नॉलाजी को अधिक प्रभावित किया इन सभी अनजाने साफ्टवेयर प्रोग्राम को वायरस कहा गया।

वायरस प्रोग्राम की शुरूआत पाकिस्तान से हुई मानी जाती है। सन् 1988 के इस बहुचर्चित प्रोग्राम का नाम सीब्रेन था। इस खतरनाक वायरस प्रोग्राम के बाद भी अनेक वायरस प्रोग्राम कम्प्यूटर के क्षेत्र में आये। "असद, बसित दो भाई 'सी अशट, सी-ब्रेन नाम के दो वायरस प्रोग्राम

बनाये ।

वायरस के प्रकार :

1. Boot Sector Virus

3. Table Partition Virus

2. File Virus

1 ) Boot Sector Virus :

यह वायरस हार्ड डिस्क या डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम की बूट फ्लापी के शून्य सेक्टर में अपना संक्रमण फैलाते हैं। यह वायरस हार्ड डिस्क में मौजूद पार्टीशन टेबल को बदल देते हैं। ये वायरस कम्प्यूटर के स्टार्ट होते ही सबसे पहले आपरेटिंग सिस्टम के पी.सी. कम्प्यूटर में कुछ आंतरिक निर्देश उसकी रीड ओनली मेमोरी में संग्रहित होते हैं और कम्प्यूटर के आपरेशन के लिये महत्वपूर्ण निर्देश कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क या डिस्क आपरेटिंग सिस्टम के शून्य सेक्टर में जाकरके स्टार्टअप प्रोग्राम के ढूढ़ते हैं। यदि शून्य सेक्टर में वायरस मौजूद है तो स्टार्टअप प्रोग्राम के स्थान पर वायरस मेमोरी के महत्वपूर्ण स्थान पर स्थापित हो जायेगा तथा इसके पश्चात् ही स्टार्टअप

प्रोग्राम पर स्थापित हो जायेगा।

बूट वायरस कम्प्यूटर की मेमोरी में तब भी स्थापित हो सकता है जब किसी भी अन्य डिस्क से कम्प्यूटर को बूट करने का प्रयास करें क्योंकि ऐसी स्थिति में कम्प्यूटर डिस्क का शून्य सेक्टर डिस्ट ऑपरेटिंग सिस्टम को पढ़ने का प्रयास करते हैं और इस समय वायरस प्रोग्राम पढ़कर नान-सिस्टम डिस्क इरर प्रदर्शित करेगा परंतु तब तक वायरस मेमोरी में स्थापित हो चुका होगा । इस दशा में बूट डिस्क के प्रयोग से मेमोरी में मौजूद वायरस डिस्क में प्रवेश कर जाता है। अभी तक के बूट सेक्टर वायरस जिनकी जानकारी प्राप्त हैं :

1.

3.

5.

पाकिस्तानी ब्रेन और अशट वायरस येल एलोमेड़ा

डैनजूड वायरस

वैक्सीना वायरस

7.

9. निकॉल्स वायरस

11.

13.

इजरायली बूट वायरस

जैरूसलेम वायरस

फाईल वायरस :

है।

2. स्टोन वायरस 4. वायसिंग बाल (पिंगपाग वायरस)

6. जैरूसलेश वायरस

8. गोल्डन मेह वायरस 10. पेटागन वायरस

12. ओहियो वायरस

यह Com, Exe, Sys, OVL, Bin, file पर अटैक करते हैं। यह वायरस फाईल से स्वयं को जोड़ लेता है और पहले स्वयं execute होता है और फिर फाईल को execute होने देता कुछ फाइल वायरस निम्न है 17xxvirus (Com) file virus, xx का अर्थ 01 से 04

अप्रैल फर्स्ट (Exe file virus)

जैरूसेलम संस्करण "T" (Com और EXE वायरस)

ली हाई वायरस

4 रेनड्रॉप वायरस कुछ फाईल वायरस फाईल पर अटैक के साथ बूट एरिया में भी अटैक करते हैं जैसे 648

वायरस ।

अन्य वायरस :--

वायरस होते हैं।

बूट सेक्टर व फाईल वायरस के अलावा कुछ अन्य वायरस भी होते हैं जो कम्प्यूटर में स्टोर प्रोग्राम तथा डाटा को नुकसान पहुंचाते हैं । जैसे ट्रोजन, वर्म आदि । ये प्रोग्राम उपयोग के समय बड़े आकर्षक रूप के भिन्न-भिन्न प्रकार के वर्ड प्रोसेसर ट्रोजन : डाटाबेस प्रोग्राम होने के दावा / भ्रम पैदा कर देते हैं। परंतु वास्तव में यह चालाकी से बनाये हुये
वर्म : ये लम्बी दूरी तय करने की क्षमता रखते हैं पर ये ज्यादातर लम्बे कम्प्यूटर नेटवर्क पर अटैक करते हैं। इस तरह के एक कम्प्यूटर नेटवर्क से दूसरे कम्प्यूटर नेटवर्क पर आसानी से फैलते रहते हूँ। यह एक प्रकार के अत्याधुनिक वायरस हैं जिनमें सूक्ष्म निर्देश होते हैं जिनसे ये हर प्रकार हो क्रिया करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार के वायरस ज्यादातर यूनिवर्स आपरेटिंग सिस्टम पर आधारित कम्प्यूटर नेटवर्क पर अटैक करते हैं। वायरस का पता लगाना :-स्केनिंग / खोजी प्रोग्राम बूट व फाईल वायरसों के अटैक को रोकने या उनके मौजूद होने का प्रमाण विभिन्न खोजी प्रग्राम के माध्यम से लगाया जाता है । इनमें कुछ कुछ

खोजी स्केनिंग प्रोग्राम निम्न हैं:

Boot-P, IVT Chk, M-Verify, PMRP, Nuspr memory, PHD

(BSRECOV)

3.4 Computer Virus के उपचार :

Vac 648

Vac STONE

Vac 8290
Vac 1701

1. इंटफाईल वैक्सीन प्रोग्राम

2. टर्बो वैक्सीन
3. पर्ल और सुपर वैक्सीन

1) Intfile Vacine Program:-एम्परमैड कंसलेटर का इंटफाईल वैक्सीन प्रोग्राम सभी 1991 सिरीज के वायरसों का निदान करने में सक्षम है। साथ ही 648, जैरूसेलम, को भी नष्ट करता है इन्हीं का इंटबूट वेक्सीन प्रोग्राम खतरनाक बूट क्षेत्र के वायरसों का निदान करता हैइनमें प्रमुख हैं" ब्रेन वायरस ब्राउसिंग बॉल 8290 और जोशी वायरस जिसकी कीमत 750 रूपये है।
2) Turbo Vaccine Program:

मद्रास के एपेक्स सिस्टम और साफ्टवेयर को टर्बो वैक्सीन सभी प्रकार के बूट क्षेत्र फाइल वायरस से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। साथ ही ट्रोजन एवं वर्म प्रोग्राम का भी यह निदान कर सकता है। इस 500 रूपये में खरीदा जा सकता है ।

3) Perl and Super Vaccine :

मद्रास के कम्प्यूटर पर्ल का पर्ल और सुपर वैक्सीन प्रोग्राम सभी के बूट क्षेत्र और अन्य फाईल वायरस को हटाने और उनके प्रभाव को रोकने में सक्षम है। प्रत्येक वैक्सीन प्रोग्राम की कीमत 2000 रूपये है।


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